हम सभी हिन्दू जाति परिवार में प्रायः किसी न किसी इश्ट देव की पूजा होती है। सभी शिव, दुर्गा, काली, लक्ष्मी, गणेश इत्यादि भगवान की पूजा करते हैं, पर हर परिवार में एक अलग ही इश्ट देवता या कुल देवता होते हैं। वैसे तो उनकी पूजा हर दिन की जाती है। लेकिन किसी खास अवसर पर जैसे शादी-व्याह, मुण्डन इत्यादि पर उनको आमांत्रि कर विशेश रूप से पूजते हैं। पुराने जमाने में हमारे घर की बड़ी बूढ़ी माताएँ, बहनें इन सब कामों में बहुत ही दक्ष हुआ करती थीं। इन्हीं सब बातों को ध्यान में रखते हुए यहाँ पर बाबा गणिनाथ जी की सुनरी पूजन की विधियाँ, उनकी पूजा में लगने वाले समान, गीत और कुछ जानकारियाँ दी जा रही है जो इस प्रकार है :-
1. श्री गणिनाथ जी, 2. क्षेमा सती मैया, 3. श्री गोविन्द जी, 4. श्री दयाराम जी, 5. श्री फेंकू जी,
6. श्री पाँचू जी. 7. श्री धर जी 8. राही जी, 9. श्री रायचन्द्रा जी. 10. शीलमती 11. यशोदा मैया 12. सोनामती, 13. चतुरी बहुरिया 14. बिजली बहुरिया ।
शादी या मुण्डन में सबसे पहले हम अपने इश्टदेव को निमंत्रण देते हैं। निमंत्रण के लिए 14 पान तथा 14 सुपाड़ी की आवश्यकता होती है। उसपर कुछ मीठा, जैसे- लड्डू या बताशा नैवेद्य लगाया जाता है। देवी-देवता के कोई चौदह गीत गाये जाते हैं। जबतक संध्या वन्दना सुन्दरी पूजन नहीं हो जाता, प्रतिदिन शाम को साझबत्ती के पश्चात उनके गीत गाये जाते है। सुन्दरी पूजन के बाद श्री गणिनाथ जी, सती मैया या लाल खाँ इत्यादि के गीत नहीं गाये जाते हैं। यदि किसी तरह की मजबूरी या समयाभाव के कारण आप सुन्दरी पुजन नहीं कर पात हैं तो दूसरी शादी में दोहरा सुन्दरी पूजन करने का भी नियम है और इसे आवश्य कर लेना चाहिए।
शादि में वैसे भी बहुत काम बढ़ जाता है, इसलिए अगर आप पहले से सब सामान जुटा लेते हैं तो समय भी बचता है तथा परेशानी भी कम होती है। सुनरी पूजन शनिवार को होता है, इसलिए शुक्रवार तक ही सारी तैयारी कर लें। एक सुनरी पूजन में पाँच सुहागिन औरतों और दो लड़कों की जरूरत होती है। पाँचो औरतें तथा बच्चे सभी स्वजाति के होने चाहिए। सभी को पहले ही, यानि शुक्रवार को सुनरी पूजन के लिए सहने (उपवास) के लिए कह दें। घर के भी किसी स्त्री पुरूश को सहना पड़ता है। सुनरी पूजन के लिए धान शुक्रवार को ही फुलने दे दें। सुनरी पुजन में लगने वाला सभी बर्तन और सामान को माँज-धोकर रख लें तो अगले दिन परेशानी नहीं होगी।
सुनरी पुजन का सामन
ढबुआ-एक जोड़ा, बेंत-अढ़ाय हाथ का, अरवा चावल -सवा किलो, धान-ढाई किलो, छोटा सुपाड़ी- 250 ग्राम, सिंदुर लटवा - 100 ग्राम, पीला कपड़ा (वायल )- सवा मीटर, लहठी कच्चा दो दर्जन, जौ-625 ग्राम तिल- 500 ग्राम, हल्दी- 250 ग्राम।
उबटन का मसाला - - कलाय (उड़द) का दाल
-
- आधा किलो
पंचमेवा (किसमिस), लौंग, इलायची, सौंफ, गरी, मखाना, छोहाड़ा) - इच्छानुसार
सुपती-तीन, मौनी-दो, दीया-दो, कमरधनी-छः, जनेउ-दो, नदिया- दो (उबटन और लावा भुँजने के लिए), पान - 50 से अधिक, मिट्टी का कच्चा ढकना या, प्लाली-दो, शुद्ध घी, गुड़, सरसों तेल, आटा, गाय का कच्चा दुध, केला, सेव, पीला, फूल, उजला फूल, तुलसी दल, दूब, साड़ी, धोती, गमछा या चादर। गणिनाथ जी और सती माँ के लिए एक धोती एक गमछा एक साड़ी, लहठी सिन्दुर, बिन्दी ।
(मौसम के अनुसार दुसरे फल भी ले सकते हैं।)
सुनरी की तैयारी
शनिवार को पूजाघर को धो पोंछ लें। पूजा की सामग्री तैयार करने वाला बर्तन भी साफ कर लें। बाल धोकर पूर्ण रूप से नहा लें तथा पूजन सामग्री तैयार करने में लग जायें। पहले अरवा चावल फटक-चुनकर तथा धोकर पानी में फुलने दे दें। फिर आग जलाकर कढ़ाही चढ़ा दें। बिना बालु के खाली कढ़ाही में धान भूनकर लावा बना लें। फुलाये गए धान को भूने और चूड़ा कूटें । अरवा चावल जो फुलने दिया गया था उसे सूप में निकालकर पानी निकलने के लिए छोड़ दें। तिल को भूनकर रख लें। जब चावल का पानी निकल जाय तो उसे कूटें। कूटा हुआ चावल महीन हो जाय तो उसमें दूध, गुड़, कटूक, भूना हुआ तिल, घी और तुलसी दल मिलाकर छोटा-छोटा लडुआ बना लें। इसी को शंकर लडुआ कहते हैं। अपने परिवार के अनुसार पुड़ी बनायें या जिनके यहाँ दोस्ती पुड़ी बनता है वे दोस्ती पुड़ी बना लें।
लाल खाँ के लिए एक बड़े आकार का पूड़ी बनवायें जिससे ढकना ढक जाय । कुटे हुए चुड़े को फटक चुनकर साफ कर लें। लावा को भी भून लें। अब पान को धोकर उसका चिकना परत उपर रखकर उसमें कटुक डालकर एक-एक पान का बीड़ा बनाकर उसमें लौंग खोंस दें, जिससे पान खुले नहीं। एक-एक पान का 35-35 बीडा बना लें। अब दस पान को एक साथ मिलाकर कटूक डालकर बीड़ा बनायें और दुसरा पाँच पान को एक साथ लेकर दुसरा बीड़ा बना लें। इस पान के बीड़े को दसौना और पाँच पान के बीड़े को पचौना कहते हैं। सुपाड़ी को हल्दी से रंग लें। बेंत और ढबुआ को धोकर उसमें तेल और लट्वा सिन्दुर लगा दें। एक बर्तन में चुड़ा, लावा, तिल, कटूक, तुलसी दल, गुड़, पूड़ी तोड़ कर मिला लें। इस मिश्रण को चुरमुरा कहते हैं। एक थाली में सब फल को धोकर काट लें।
अब प्रसाद को सजाने का काम शुरू करें। एक थाली या पत्ता पर जोड़ा पूड़ी या दो-दो पूड़ी एक साथ कर के रखें। फिर उसपर एक-एक शंकर लडुआ रखें। फिर थोड़ा-थोड़ा चुरमुरा दें। अब एक-एक केला और सब कटा हुआ फल दें। अगर केला कम हो तो काट कर भी दे सकते हैं। फिर एक-एक पान का बीड़ा दें। इलायची, तुलसी, और एक-एक सुपाड़ी दें।
पूजा शुरू करने के पहले पूजा करने वाले पति-पत्नी नहा धोकर नये वस्त्र पहनकर तैयार हो जायें। कोई सिला हुआ कपड़ा नहीं पहनें। स्त्री अपनी साड़ी के खोइचा में एक जोड़ा पूड़ी, चुरमुरा, शंकर लड्डू, पान का बीड़ा, पैसा, हल्दी ले तथा नाक जोड़कर सिन्दुर और लहठी पहन लें। पुरूश धोती, चादर, कमरधानी पहल लें। दोनों पति-पत्नी गेठ जोड़कर ही पूजन करें। सुहागिन औरतों और बच्चों को भी नहाकर बिना सिले कपड़े पहनकर तैयार रहने को कहें। औरतें बाल धोकर बिना सिन्दुर-तेल लगाये हुए सुन्दरी में भाग लेंगे। दो दीपक घी-बत्ती डालकर तैयार रखें। दो लोटा या दो कटोरा पीतल या कासे का, वो भी तैयार रखें।
पूजन विधि : सबसे पहले गंगा जल से पूजन स्थल यानि गोसांय के पिण्डी को धो दें। दीपक जला लें। पूजाघर में पूजा के स्थानपर एक कलश की स्थापना कर, कलश और दीपक की पूजा जल, फूल, अक्षत, चंदन और नैवेध से करें। कलश और दीपक को साक्षी बनाकर पूजन आरम्भ करें।
सर्वप्रथम श्री गणेश जी का पूजा करें: जल, सिन्दुर, फल और जोड़ा पूड़ी सहित सब प्रसाद चढ़ायें ।